Wednesday, May 7, 2014

रमाजय शर्मा ....... विषबेल

मुझे विषबेल
क्यों समझ लिया
माँ
मैं तो एक
कोंपल थी
तेरे ही तन की
क्यूं उखाड़ फेंका
फिर मुझे तूने
माँ
क्या तुझे मैं
लगी विषबेल सी
मैं तो तेरे ही
अंतर में उपजी
तेरे ही जैसी
तेरा ही रूप थी
माँ
जब जब मैंने
तेरी कोख में
आने की कोशिश की
तूने क्यूं मुझे
उखाड़ फेंका
माँ
एक बार
बाहरआने का 
मौका दे कर 
तो देखती
माँ
मुझ से ज्यादा
तेरा दर्द
कोई न समझता
माँ
क्योंकि जब जब
मुझे उखाड़ा गया
तेरी कोख से
जितना दर्द मुझे हुआ
माँ
उस से कहीं 
ज्यादा दर्द
तुझे हुआ था
माँ
मेरे आंसू तो
बह ही नही पाये
लेकिन तूने
छिप छिप कर
जाने कितने तकिये
भिगोये थे
माँ
एक बार बस
हिम्मत कर के
देखती तो 
माँ
ये विषबेल
तेरी अमरबेल
बन जाती
माँ  ................. रमाजय शर्मा 

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