Thursday, February 27, 2014

दिगंबर नासवा ....... रोने से कुछ दिल का बोझ उतर जाता है !


धीरे धीरे हर सैलाब उतर जाता है 
वक्त के साथ न जाने प्यार किधर जाता है 

यूँ ना तोड़ो झटके से तुम नींदें मेरी 
आँखों से फिर सपना कोई झर जाता है 

आने जाने वालों से ये कहती सड़कें 
इस चौराहे से इक रस्ता घर जाता है 

बचपन और जवानी तो आनी जानी है 
सिर्फ़ बुढ़ापा उम्र के साथ ठहर जाता है 

सीमा के उस पार भी माएँ रोती होंगी 
बेटा होता है जो सैनिक मर जाता है 

अपने से ज़्यादा रहता हूँ तेरे बस में 
चलता है ये साया जिस्म जिधर जाता है 

सुख में मेरे साथ खड़े थे बाहें डाले 
दुख आने पे अक्सर साथ बिखर जाता है 

कुछ बातें कुछ यादें दिल में रह जाती हैं 
कैसे भी बीते ये वक़्त गुज़र जाता है 

माना रोने से कुछ बात नहीं बनती पर 
रोने से कुछ दिल का बोझ उतर जाता है ! …… दिगंबर नासवा

Tuesday, February 25, 2014

"निराला" ................स्नेह-निर्झर बह गया है !

स्नेह-निर्झर बह गया है !
रेत ज्यों तन रह गया है ।

आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-
जीवन दह गया है ।"

"दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल--
ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है ।"

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा ।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही
कवि कह गया है । 
                             ..... निराला 

Friday, February 21, 2014

गुलज़ार ..... पतझड़ में जब

पतझड़ में जब
पत्ते गिरने लगते हैं 
क्या कहते होंगे शाखों से?
कहते होंगे न,
हम तो अपना मौसम जी कर जाते हैं

तुम खुश रहना..
तुमको तो हर मौसम की
औलादें पाल के रुखसत करनी होंगी

शाख की बारी आई थी
जब कटने की
तो पेड़ से बोली
तुमको मेरी उम्र लगे
तुमको तो बढ़ना है
उंचा होना है
दूसरी आ जायेगी
मुझको याद न रखना

पेड़ ज़मीन से क्या कहता?
जब खोद खोद कर
उसके जड़ों के टांकें तोड़े
और उसको ज़मीन से अलग किया
उलटा ज़मीन को कहना पड़ा
याद है एक छोटे से बीज से
तुमने झाँक कर देखा था
जब पहली पत्ती आई थी
फिर आना
और मेरी कोख से
पैदा होना
अगर मैं बची रही
अगर मैं बची रही
                ....गुलज़ार 

Sunday, February 16, 2014

सतीश सक्सेना ........ जब देखोगे खाली कुर्सी, पापा याद बड़े आयेंगे

चले गए वे अपने घर से 
पर मन से वे दूर नहीं हैं 
चले गए वे इस जीवन से  
लेकिन लगते दूर नहीं हैं !
अब न सुनोगे  वे आवाजें, जब वे दफ्तर से आयेंगे  !
मगर याद करने पर उनको,कंधे  हाथ रखे पाएंगे !

अब न मिलेगी पुच्ची वैसी 
पर स्पर्श  तो बाकी होगा ! 
अब न मिलेगी उनकी आहट 
पर अहसास तो बाकी होगा
कितने ताकतवर लगते थे,वे कठिनाई के मौकों पर !
जब जब याद करेंगे दिलसे , हँसते हुए, खड़े पाएंगे !

अपने कष्ट नही कह पाये
जब जब वे बीमार पड़े थे 
हाथ नहीं फैलाया आगे 
स्वाभिमान के धनी बड़े थे
पाई पाई बचा के कैसे, घर की दीवारें  बनवाई !
जब देखेंगे  खाली कुर्सी, पापा  याद बड़े आयेंगे !

अब तो उनके बचे काम को 
श्रद्धा  से  पूरे  कर  लेना !
उनके दायित्वों को ही बस 
मान सहित पूरे कर लेना !
चले गए वे बिना बताये पर हमको आभास रहेगा    
दुःख में हमें सहारा देने , पापा पास खड़े पाएंगे !

तिनका तिनका जोड़ उन्होंने 
इस घर का निर्माण किया था !
बड़ी शान से, हम बच्चों  को 
पढ़ा लिखा कर,बड़ा किया था !
उनकी बगिया को महकाकर,यादें खुशबूदार रखेंगे !  
हमें पता है हर सुख दुःख में,पापा पास खड़े पाएंगे ! ....... सतीश सक्सेना

Saturday, February 15, 2014

मिर्ज़ा ग़ालिब ...... जा़हिर है तेरा हाल सब उन पर

घर जब बना लिया तिरे दर पर, कहे बिग़ैर
जानेगा अब तू न मिरा घर कहे बिग़ैर

कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़ते सुख़न       
जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर, कहे बिगै़र

काम उससे आ पड़ा है, कि जिस का जहान में
लेवे न कोई नाम, सितमगर कहे बिग़ैर 

जी ही में कुछ नहीं है हमारे वगरना हम
सर जाये या रहे, न रहें पर कहे बिगै़र   

छोड़ूंगा मैं न, उस बूते- काफ़िर का पूजना
छोड़े न खल्क़ गो मुझे काफिर कहे बिगैर

मक़सद है नाजो़-गम्जा, वले गुफ्तगू में, काम
चलता नहीं है दश्न-ओ-खंजर कहे बिग़ैर

हरचंद, हो मुशाहिद-ए-हक़  की गुफ़्तुगू
बनती नहीं है, बादा-ओ-सागर कहे बिगैर

बहरा हूं मैं, तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात  
सुनता नहीं हूं बात, मुकर्रर  कहे बिग़ैर

‘ग़ालिब’, न कर हुजूर में तू बार-बार अर्ज़
जा़हिर है तेरा हाल सब उन पर, कहे बिग़ैर  ....... मिर्ज़ा ग़ालिब

Thursday, February 13, 2014

मुकेश कुमार सिन्हा ....... सिर्फ जिया जाता है प्यार!!!

न आसमान को मुट्ठी में,
कैद करने की थी ख्वाइश,
और न, चाँद-तारे तोड़ने की चाहत!
कोशिश थी तो बस,
इतना तो पता चले की,
क्या है?
अपने अहसास की ताकत!!

इतना था अरमान!
की गुमनामी की अँधेरे मैं,
प्यार के सागर मैं,
ढूँढू अपनी पहचान!!
इसी सोच के साथ,
मैंने निहारा आसमान!!!

और खोला मन को द्वार!
ताकि कुछ लिख पाऊं,
आखिर क्या है?
ढाई आखर प्यार!!
पर बिखर जाते हैं,
कभी शब्द तो कभी,
मन को पतवार!!!
रह जाती है,
कलम की मुट्ठी खाली हरबार!!!!

फिर आया याद,
खुला मन को द्वार
कि किया नहीं जाता प्यार!!
सिर्फ जिया जाता है प्यार!!!
किसी के नाम के साथ,
किसी कि नाम के खातिर!
प्यार, प्यार और प्यार!!!! 

                       ........ मुकेश कुमार सिन्हा 

कन्हैयालाल नंदन ....... जब भी कहीं कोई झील डबडबाती है

सुनो,
अब जब भी कहीं कोई झील डबडबाती है
तो मुझे तुम्हारी आंखों में
ठिठके हुये बेचैन समंदर की याद आती है।
और जब भी वह बेचैनी
कभी फ़ूटकर बही है
मैंने उसकी धार के एक-एक मोती को हथेलियों में चुना है
और उनकी ऊष्मा में
तुम्हारे अन्दर की ध्वनियों को बहुत नजदीक से सुना है।
अंगुलियों को छू-छूकर
संधों से सरक जाती हुई
आंसुओं की सिहरन
जैसे आंसू न हो
कोई लगभग जीवित काल-बिन्दु हो
जो निर्वर्ण,
नि:शब्द
अंगुलियों के बीच से सरक जाने की कोशिश कर रहा हो
किसी कातर छौने-सा।
और अब अपनी उंगलियों को सहलाते हुये
समय
मुझे साफ़ सुनाई देने लगा है।
इसीलिये जब भी तुम्हारा दुख फ़ुटकर बहा है
मैंने उसे अपनी हथेलियों में सहेजा।
भले ही इस प्रक्रिया में
समय टूट-टूट कर लहूलुहान होता रहा
लेकिन तुम्हे सुनने के लालच में
मेरे इन हाथों ने
इस कष्टकर संतुष्टि को बार-बार सहा है।
और अब जब भी कहीं कोई झील डबडबाती है
तो रफ़्तार की बंदी बेचैनी
मेरी हथेलियों में एक सिहरन भर जाती है।
अब जब भी कहीं कोई झील डबडबाती है……..।
कन्हैयालाल नंदन

Saturday, February 8, 2014

आराधना 'मुक्ति' ....... मेरे दोस्त

मैं खुद को आज़ाद तब समझूँगी

जब सबके सामने यूँ ही

लगा सकूँगी तुम्हें गले से

इस बात से बेपरवाह कि तुम एक लड़के हो,

फ़िक्र नहीं होगी

कि क्या कहेगी दुनिया?

या कि बिगड़ जायेगी मेरी 'भली लड़की' की छवि,

चूम सकूँगी तुम्हारा माथा

बिना इस बात से डरे

कि जोड़ दिया जाएगा तुम्हारा नाम मेरे नाम के साथ

और उन्हें लेते समय

लोगों के चेहरों पर तैर उठेगी कुटिल मुस्कान


जब मेरे-तुम्हारे रिश्ते पर

नहीं पड़ेगा फर्क

तुम्हारी या मेरी शादी के बाद,

तुम वैसे ही मिलोगे मुझसे

जैसे मिलते हो अभी,

हम रात भर गप्पें लड़ाएँगे

या करेंगे बहस

इतिहास-समाज-राजनीति और संबंधों पर,

और इसेतुम्हारे या मेरे जीवनसाथी के प्रति

हमारी बेवफाई नहीं माना जाएगा


वादा करो मेरे दोस्त!

साथ दोगे मेरा,भले ही ऐसा समय आते-आते

हम बूढ़े हो जाएँ,या खत्म हो जाएँ कुछ उम्मीदें लिए

उस दुनिया में

जहाँ रिवाज़ है चीज़ों को साँचों में ढाल देने का,

दोस्ती और प्यार को

परिभाषाओं से आज़ादी मिले ........ आराधना 'मुक्ति'

अमित श्रीवास्तव ......" कहानी .......एक जोड़े की "


एक प्यारा सा जोड़ा था ,
दोनों ने तिल तिल ,
आपस में प्यार था जोड़ा ,
इस जोड़े हुए प्यार से उनकी ,
हयाते-राह खुशगवार हुई ,

जोड़ा जोड़ने की ,
ख्वाहिश लिए ,
खुद को दुनिया से,
रिश्ते तमाम जोड़ता गया  ,

हयाते-राह एक भूल हुई ,
दोनों ने प्यार के इस जोड़ में ,
अपने अपने हिस्से का प्यार ,
बराबर न जोड़ा ,

प्यार का जोड़ गलत हुआ ,
जोड़ा जोड़ में उलझ गया ,
जोड़ जोड़ खुल गया ,
प्यार तितर बितर हो गया ,
जोड़ा जड़वत हो गया । 

                              "प्यार में हिसाब कैसा ..प्यार तो बे-हिसाब होना चाहिए "
                                                                                        ..............  अमित श्रीवास्तव