Saturday, November 30, 2013

नीरज ...... एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के

एक तेरे बिना ,प्राण ओ प्राण के 
साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर ! 

बाँसुरी से बिछुड़ जो गया स्वर उसे
भर लिया कंठ में शून्य आकाश ने,
डाल विधवा हुई जो कि पतझर में
माँग उसकी भरी मुग्ध मधुमास ने !

हो गया कूल नाराज जिस नाव से
पा गई प्यार वह एक  मँझधार का ,
बुझ गया जो दीया भोर में दीन-सा
बन गया रात सम्राट अँधियार का !

जो सुबह रंक था, शाम राजा हुआ
जो लुटा आज कल फिर बसा भी वही,
एक मैं ही कि जिसके चरण से धरा
रोज तिल-तिल धसकती रही उम्र-भर ! 

एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के 
साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर ! 

प्यार इतना किया जिंदगी में कि जड़ -
मौन तक मरघटों का मुखर कर दिया,
रूप सौंदर्य इतना लुटाया कि हर
भिक्षु के हाथ पर चंद्रमा धर दिया !

भक्ति-अनुरक्ति ऐसी मिली, सृष्टि की
शक्ल हर एक मेरी तरह हो गई, 
जिस जगह आँख मूँदी निशा आ गई
जिस जगह आँख खोली सुबह हो गई !

किंतु इस राग-अनुराग की राह पर
वह न जाने रतन कौन सा खो गया ?
खोजती सी जिसे दूर मुझसे स्वयं
आयु मेरी खिसकती रही उम्र भर !

एक तेरे बिना ,प्राण ओ प्राण के 
साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर ! 

वेश भाए न जाने तुझे कौन-सा
इसलिए रोज कपड़े बदलता रहा
किस जगह ,कब ,कहाँ हाथ तू थाम ले
इसलिए रोज गिरता संभलता रहा !

कौन सी मोह ले तान तेरा हृदय
गीत गाया इसी से सभी राग का, 
छेड़ दी रागिनी आँसुओ की कभी
शंख फूँका कभी क्राँति का आग का !

किस तरह ,खेल क्या खेलता तू मिले
खेल खेले इसी से सभी विश्व के ,
कब न जाने करे याद तू इसलिए 
याद कोई ‍कसकती रही उम्र भर !

एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के 
साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर !

रोज ही रात आई ,गई रोज ही
आँख झपकी ,मगर नींद आई नहीं
रोज ही हर सुबह, रोज ही हर कली
खिल गई तो मगर मुस्कुराई नहीं !

नित्य ही रास  में बृज रचा चाँद ने 
पर न बाजी बाँसुरिया कभी श्याम की
इस तरह उर - अयोध्या बसाई गई
याद भूली न लेकिन किसी राम की !

हर जगह जिंदगी में लगी कुछ कमी
हर हँसी आँसुओं में नहाई मिली
हर समय, हर घड़ी, भूमि से स्वर्ग तक
आग कोई दहकती रही उम्र भर ! 

एक  तेरे बिना प्राण ओ प्राण के 
सांस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !

खोजता ही फिरा पर अभी तक मुझे 
मिल सका कुछ न तेरा ठिकाना कहीं,
ज्ञान से बात की तो कहा बुद्धि ने 
'सत्य है वह मगर आजमाना नहीं' !

धर्म के पास पहुँचा पता यह चला
मंदिरों मस्जिदों में अभी बंद है,
जोगियों ने जताया कि जप-योग है
भोगियों से सुना भोग-आनंद है !

किंतु पूछा गया नाम जब प्रेम से 
धूल से वह लिपट फूटकर रो पड़ा,
बस तभी से व्यथा देख संसार की
आँख मेरी छलकती रही उम्र-भर !

एक तेरे बिना प्राण ओ प्राण के 
साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !! ...........नीरज 

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