Sunday, August 18, 2013

मोबाइल सचमुच कितना मोबाइल है.......... - गुलज़ार

मोबाइल सचमुच कितना मोबाइल है
एक कान पे दफ्तर पहना है,
और दूजे पर
घर रक्खा है -

सारे काम मैं
दाएं कान से करता हूं
और बाकी घर के बाएं से

दाएं कान से मैनेजर ने पकडा
खाना खाते हुए
एक जरूरी ख़त है सर:

गैरेज से एक फोन आया
फिर दाएं कान पे -
क्लच प्लेट सर, टूट गई है-
कार्बोरेटर में कचरा था-

बाएं कान पे बीप हुई-
बीवी से कहा के होल्ड करो
-वह न्यूयार्क से बोल रही थी-

सर जोड के बैठी औरतों में, जब
कोइ बच्चा रोये तो
छाती से लगा के उसकी मां,
कुछ देर अलग हट जाती है-
कुछ ऐसे ही मीटिंग में..
मोबाइल कान पे रख के कोई
मीटिंग से उठ जाता है!

इक मय्यत पर देखा,
कान लगाये कोई,
सरगोशी में बोल रहा था
शायद पूछ रहा हो
किसी फ़रिश्ते से
गया है जो, पहुंचा के नहीं?

एक हिदायत बार-बार
इक नंबर पर आ जाती है
आउट आफ़ रीच है,
बाद में कोशिश करके देखें,

ये नंबर शायद उनका है
...बडे मियां का!

- गुलज़ार

Sunday, August 11, 2013

परेशान कर दिया है, इस वकील के सवालों ने ...... 'अदा'

शुमार थे कभी उनके, रानाई-ए-ख़यालों में
अब देखते हैं ख़ुद को हम, तारीख़ के हवालों में

गुज़री बड़ी मुश्किल से, कल रात जो गुज़री है  
टीस भी थी इंतहाँ, तेरे दिए हुए छालों में 

बातों का सिलसिला था, निकली बहस की नोकें 
फिर उलझते गए हम, कुछ बेतुके सवालों में

सागर का क्या क़सूर, वो चुपचाप ही पड़ा था
उसको डुबो दिया मिलके, चंद मौज के उछालो ने 

हूँ गूंगी मैं तो क्या 'अदा', इल्ज़ाम गाली का है 
परेशान कर दिया है, इस वकील के सवालों ने

कुछ होंठ सूखे हुए थे, और थे कुछ प्यासे हलक 
पर गुम गईं कई ज़िंदगियाँ, साक़ी तेरे हालों में
                                                          - 'अदा'
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रानाई-ए-ख़यालों=कोमल अहसास
साक़ी=शराब बाँटने वाली
हाला=शराब की प्याली

Saturday, August 10, 2013

अनु -- प्यार की परिभाषा



तुम्हारे लिए प्यार था
ज़मीं से फलक तक साथ चलने का वादा
और मैं खेत की मेड़ों पर हाथ थामे चलने को
प्यार कहती रही....
तुम  चाँद तारे तोड़ कर
दामन में टांकने की बात को प्यार कहते रहे
मैं तारों भरे आसमां तले
बेवजह हँसने और  बतियाने को
प्यार समझती रही….
तुम सारी दुनिया की सैर करवाने को
प्यार जताना कहते,
मेरे लिए तो  पास के मंदिर तक जाकर
संग संग दिया जलाना प्यार था...
तुम्हें मोमबत्ती की रौशनी में
किसी आलीशान होटल में
लज़ीज़ खानाप्यार लगता था
मुझे रसोई में साथ बैठ,एक थाली से
एक दूजे को
निवाले खिलने में प्यार दिखा...

शहंशाही प्यार था तुम्हारा...बेशक ताजमहल सा तोहफा देता... मौत के बाद भी.

मगर मेरी चाहतें तो थी छोटी छोटी
कच्ची-पक्की
खट्टी मीठी.......चटपटी
ठीक  ही कहते थे तुम
शायद पागल ही थी मैं.
             - अनु