Saturday, March 9, 2013

गमगुसारी


दोस्त मायूस न हो 
सिलसिले टूटते बनते ही रहे हैं आखिर 
तेरी पलकों पे सरअश्कों के सितारे कैसे
तुझको गम है तेरी महबूब तुझे मिल न सकी 
और जो जीस्त तराशी थी तेरे ख्वाबों ने
आज वो ठोस हक़ायक़ में कहीं टूट गयी
तुझको मालूम है मैंने भी मुहब्बत की थी
और अंजामे-मुहब्बत भी है मालूम तुझे 
किसने पायी है भला जीस्त की तल्खी से निजात 
चारो-नाचार ये जहराब सभी पीते हैं  
जां-सपारी के फरेबिन्दा फसानों पे न जा 
कौन मरता है  मुहब्बत में सभी जीते हैं 
वक़्त हर जख्म को हर गम को भुला देता है 
वक़्त के साथ ये सदमा भी गुज़र जायेगा 
और ये बातें जो दुहराई हैं मैंने इस वक़्त 
तू भी एक रोज इन्हीं बातों को दुहरायेगा 
दोस्त मायूस न हो.
                      -अहमद राही  
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Friday, March 8, 2013

किराये का है ये मकां ........ - कुंअर बेचैन

किराये का है ये मकां छोड़ते हैं । 
ऐ मालिक ,तेरा ये जहां छोड़ते हैं । 

ये क्यूँ कह दिया इश्क़ को छोड़ दें हम , 
लो हम जिस्म से अपनी जां छोड़ते हैं । 

तो ये जानिये बाग़ में कुछ कमी है ,
परिंदे अगर आशियां छोड़ते हैं । 

भले ही वो केंचुल बदल कर भी आएं  ,
मगर लोग डंसना कहां छोड़ते हैं । 

किसी के मुबारक कदम लफ्ज़ बनकर ,
मेरी हर गज़ल में निशां छोड़ते हैं । 

कहां ऐसे बेटों को खुशियां मिलेंगी ,
जो रोती हुई अपनी मां छोड़ते हैं । 

न तू हीर है और न रांझा हूं मैं ही ,
चलो ,फिर भी एक दास्तां छोड़ते हैं । 

बड़े लोग भी बादलों की तरह ही ,
जमीं के लिए आस्मां छोड़ते हैं । 

उजाले जो दें उनकी कालिख न देखो ,
कि जलते दिये भी धुंआ छोड़ते हैं । 
                               - कुंअर बेचैन