Saturday, October 22, 2011

ये राहे - कू - ए - यार है राहे अदम नहीं ........

वो दिन है कौन सा कि सितम पर सितम नहीं 
गर ये  सितम  है  रोज़ तो  इक  रोज़ हम नहीं 

ये   दिल  मुझे   डुबो  के  रहेगा , कि  सीने  में 
वो  कौन  सा   है  दाग़  जो  गिर्दाबे - ग़म नहीं 

अहले - सफ़ा का देखा न  दामन किसी ने तर 
गौहर है  अपनी  आब  में  ग़र्क और नम नहीं 

गर आबे - दीद  शर्बते - कौसर भी है तो क्या 
जब तक कि उसमें चाशनी- ए- दर्दो -ग़म नहीं 

जाता  है  आँखें  बंद  किए   ज़ौक  तू   कहां
ये  राहे - कू - ए - यार  है  राहे  अदम  नहीं 
                                                        -ज़ौक 

Friday, October 21, 2011

दो घड़ी के बाद ......


क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद
सीने में सांस होगी अड़ी दो घड़ी के बाद 

कोइ  घड़ी  अगर वो मुलाइम हुए तो क्या 
कह बैठेंगे फिर एक कड़ी दो घड़ी के बाद 

क्या रोका अपने गिरिये को हमने कि लग गई
फिर वो ही आंसुओं की झड़ी दो घड़ी के बाद 

कल हमने उससे तर्के - मुलाक़ात की तो क्या 
फिर उस  बगैर कल न पड़ी दो घड़ी के बाद 

गर दो घड़ी तक उसने न देखा इधर तो क्या 
आख़िर हमीं से आँख लड़ी दो घड़ी के बाद 

क्या जाने दो घड़ी वो रहे "ज़ौक" किस तरह 
फिर तो न ठहरे पाँव घड़ी दो घड़ी के बाद 
                                                 -ज़ौक

Saturday, October 8, 2011

हे वीणा वादिनी वर दे !


                 हे वीणा वादिनी वर दे !
मेरी एक कोरी कॉपी को तू कविताओं से भर दे ! 

अगर कहीं पर सम्मेलन में मेरे सुर छिड़ जायें ,
जनता की क्या बात ,लीडर भी भागे-भागे आयें ,
संयोजक झट झोली में ,नोटों की गड्डी भर दे !
                हे वीणा वादिनी वर दे !

मेरे गीतों को सुन कर , 'नीरज' भी  पानी भर जाये ,
'पुष्प'-वुष्प की गिनती क्या ,बेढ़ब सा ज्ञानी डर जाये ,
जो गुण है 'काका हाथरसी में' ,वह सब मुझमें जड़ दे !
                 हे वीणा वादिनी वर दे !

वीर रस की कविता सुनाकर ,पब्लिक में 'हुल्लड़' मचवाये ,
ऐसे  जूते  चलें  वहाँ   पर ,  संयोजक  भी  पिट  जाये ,
ऐटम  बम  जैसे  परमाणु  , मेरी  वीणा  में  धर   दे ! 
                 हे वीणा वादिनी वर दे !
                                             -हुल्लण मुरादाबादी 

Friday, October 7, 2011

दुनिया में बड़ी चीज़ मेरी जान ! हैं आँखें

हर तरह के जज्बात का ऐलान है आँख 
शबनम कभी ,शोला कभी तूफ़ान है आँखें 

आँखों  से  बड़ी  कोई  तराजू  नहीं  होती 
तुलता है बशर जिसमें वो मीज़ान हैं आँखें 

आँखें ही मिलाती  हैं  जमाने में दिलों को 
अनजान हैं हम तुम अगर अनजान हैं आँखें 

लब कुछ भी कहें इससे हक़ीक़त नहीं खुलती 
इंसान   के  सच  झूठ  की  पहचान  हैं   आँखें 

आँखें  न  झुकें  तेरी  किसी  गैर  के  आगे 
दुनिया  में  बड़ी  चीज़  मेरी जान  !  हैं  आँखें 

                         -साहिर लुधियानवी