Friday, February 25, 2011

"जो ज़ीस्त को न समझे ......."

जो ज़ीस्त को न समझें ,जो मौत  को न जाने 
जीना उन्हीं का जीना , मरना उन्हीं का मरना 

दरिया  की  ज़िंदगी  पर   सदकें  हज़ार  जानें 
मुझको  नहीं  गवारा  साहिल की मौत  मरना 

कुछ आ चली है आहट  उस पाए -नाज़ की सी 
तुझ पर खुदा की रहमत ,ऐ  दिल ज़रा ठहरना 

   साभार : जिगर मुरादाबादी 
.................................................................................................
ज़ीस्त = जीवन 
पाए - नाज़ = प्रेयसी के पैरों की आहट

   

No comments:

Post a Comment