जो ज़ीस्त को न समझें ,जो मौत को न जाने
जीना उन्हीं का जीना , मरना उन्हीं का मरना
दरिया की ज़िंदगी पर सदकें हज़ार जानें
मुझको नहीं गवारा साहिल की मौत मरना
कुछ आ चली है आहट उस पाए -नाज़ की सी
तुझ पर खुदा की रहमत ,ऐ दिल ज़रा ठहरना
साभार : जिगर मुरादाबादी
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ज़ीस्त = जीवन
पाए - नाज़ = प्रेयसी के पैरों की आहट
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