Wednesday, February 23, 2011

"नादां - कोशिश"

घंटों बैठी सोचती हूं की कौन सी धड़कन नज़्म करूं 
कौन सा रंग मुट्ठी में भर लूं 
किस   लम्हे   को  कैद   करूं

सोच की इस  नादां  कोशिश  पे  बैठी - बैठी  सोचती हूं
किसने  लम्हे क़ैद  किये  या ख़ुशबू  को  पाबन्द किया   
लफ़्ज़ों के बोसीदा  जाल  से  कौन  रंग को थाम  सका 

आज तो रूह उस दौर में है जिस दौर का कोई नाम नहीं 
एक घना  धंधलका हर  सू 
कोई सुबह ,कोई शाम नहीं 

मौसम की सांय - सांय में सन्नाटा - सन्नाटा है 
बारिश ने पायल  तो   पहनी 
पर    कोई     झंकार     नहीं 
धड़कन के लब तो हिलते हैं
पर    कोई    आवाज़    नहीं 

हर शेर है  भीगा - भीगा सा और  नज़्म  है रूठी - रूठी सी 
इस बोझलपन को ओढ़-लपेट ,चुपचाप मैं घंटों सोचती हूं 
अब कौन सी धड़कन नज़्म करूं
और  किस  लम्हे  को  क़ैद  करूं 

        साभार : मीना कुमारी 

2 comments:

  1. मौसम की सांय - सांय में सन्नाटा - सन्नाटा है
    बारिश ने पायल तो पहनी
    पर कोई झंकार नहीं
    धड़कन के लब तो हिलते हैं
    पर कोई आवाज़ नहीं

    खूबसूरत भाव रचना मेँ ।

    ReplyDelete
  2. मीना कुमारी को पढ़ना अच्छा लगा.

    सादर

    ReplyDelete