Thursday, February 17, 2011

दिन कटा , जाइये अब ..........(ज़ौक )

दिन कटा , जाइए अब रात किधर  काटने को 
जब से वो घर में नहीं , दौड़े  है घर  काटने को 

हाए  सैयाद  तो  आया  मिरे   पर  काटने  को 
मैं तो ख़ुश था कि छुरी लाया है सर काटने को 

अपने आशिक़ को न खिलवाओ कनी हीरे की 
उसके आसूं ही किफ़ायत हैं जिगर काटने को 

वो शजर हु न गुलो  -  बार  न  साया   मुझमें 
बागबां ने  लगा  रक्खा  है  मगर  काटने  को 

शाम से  ही दिले - बेताब का  है ज़ौक ये हाल
है  अभी   रात   पड़ी   चार  पहर   काटने  को

     साभार : ज़ौक
      .........................................................................
सैयाद = शिकारी 
किफ़ायत = काफ़ी
शजर = पेड़ 
गुलो - बार =फूल- फल 
  

No comments:

Post a Comment