Tuesday, February 15, 2011

" ज़ौक " की गज़ल

जीना  नज़र अपना  हमें  उसला  नहीं आता
गर आज  भी  वो रश्के - मसीहा  नहीं आता 


मजकूर तिरी बज्म में किस का  नहीं आता
पर  ज़िक्र  हमारा  नहीं  आता ,  नहीं  आता 


आता है दम आंखो में दमे - हसरते - दीदार 
पर लब पे  कभी हर्फे - तमन्ना  नहीं  आता 


बेजा है दिल  ! उसके न  आने की शिकायत 
क्या कीजिएगा फर्माइये , अच्छा नहीं आता 


हम रोने पे आ  जाएं तो  दरिया  ही  बहा  दें 
शबनम की तरह से  हमें  रोना  नहीं  आता 


किस्मत ही से लाचार  हुं  ऐ  जौक  वर्गना
सब फ़नमें हुं मैं ताक मुझे क्या नहीं आता 


       साभार : ज़ौक 
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उसला = कदापि 
रश्के - मसीहा  =प्रेयसी 
मज़कूर = ज़िक्र 
ताक़ = दक्ष 

1 comment:

  1. 'इश्‍क है तो शिकायत न कीजिए,
    और शिकवे हैं तो मुहब्‍बत न कीजिए।'

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