Monday, January 31, 2011

" किससे मुहब्बत है ?"

बताउं  क्या  तुझे  ,  ऐ हमनशी ,  किससे  मुहब्बत  है 
मैं जिस दुनिया में रहता हुं वो उस दुनिया की औरत है 
सरापा  रंगों   -  बू  है  पैकरे -  हुस्नो   -   लताफत   है 
             बहिश्ते - गोश होती  है  शुहर - अफ्शानिया  उसकी |


वो मेरे  आस्मां   पर  अख्तरे  -  सुबहे -  कयामत  है 
सुरेया-  बख्त है जोहरा  - जवी  है   माहे  -  तलत  है 
 मेरा   इमां  है  ,  मेरी  ज़िन्दगी  है  , मेरी जन्नत  है 
                मेरी आखों को  खीश  कर  गईं  बावानियां  उसकी |


वो   इक मिजराब है और छेड़ सकती है रागे - जाँ को
वो चिंगारी है लेकिन  फूंक  सकती है   गुलिस्तां   को 
वो बिजली  है जला सकती है सारी  बज्में  इम्कां  को
                  अभी मेरे ही  दिल तक  है शरर - सामानिया  उसकी |


    साभार  : मजाज़ 


 पैकरे-हुस्नो-लताफत = सौंदर्य  और सुकुमारता की प्रतिमा 
शुहर-अफ्शानिया =बातें करना 
सुरेया-बख्त ,माहे तलत = चांद- तारे जैसा चेहरा 
खीश  =चकाचौंध  
वावानिया =आभा 
शरर-सामानिया =अंगारे बरसाना 

3 comments:

  1. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति....
    बस यूँही हरदम लिखती रहे......और अपने दूसरे ब्लाग जायका पर भी कुछ नया बनाना सीखाये अच्छा रहेगा.......शुभकामनाएँ

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  2. अपने ब्लाग के सेटिंग में जाकर वर्ड भैरिफिकेसन को हटा दे.......कामेन्ट करने में दिक्कत होती है इस कारण............

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