Sunday, January 16, 2011

’ ग़ज़ल ’

     आग़ाज़ तो   होता   है   अंज़ाम     नहीं    होता
     जब मेरी कहानी   में    वह नाम नहीं   होता

     जब ज़ुल्फ़ की कालिख में गुम जाए कोई राही
        बदनाम सही ,लेकिन कोई   गुमनाम नही होता

     हंस-हंस के जवां दिल के हम क्यों न चुने टुकड़े
                          हर शख़्स   की    किस्मत   में   ईनाम   नहीं   होता

      बहते हुए आंसू   ने आंखों   से   कहा   थम   कर
      जो मय   से   पिघल जाए वह जाम नहीं होता

      दिन    डूबे     हैं    या डूबी बारात   लिए कश्ती
      साहिल पे   मगर कोई   कोहराम    नहीं होता

                 साभार :  मीना कुमारी

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