Thursday, January 6, 2011

बातें

आ साजन,आज बातें कर लें......

तेरे दिल के बागों में हरी चाह की पत्ती-जैसी
जो बात जब भी उगी,तूने वही बात तोड़ ली

हर इक नाजुक बात छुपा ली,हर इक पत्ती सूखने डाल दी

मिट्टी के इस चूल्हे में से हम कोई चिन्गारी ढूंढ लेंगे
 एक -दो फ़ूंक मार लेंगे बुझती लकड़ी फ़िर से बाल लेंगे

मिट्टी के इस चूल्हे में इश्क की आंच बोल उठेगी
 मेरे जिस्म की हंड़िया में दिल का पानी खौल उठेगा

आ साजन आज खोल पोटली.....
.
हरी चाय की पत्ती की तरह
वही तोड़-गवाई बांते वही सम्भाल सुखाई बांते
 इस पानी में डाल कर देख इसका रंग बदल कर देख

गर्म घूंट इक तुम भी पीना,गर्म घूंट इक मै भी पी लूं
 उम्र का ग्रीश्म हमने बिता दिया,उम्र का शिशिर नहीं बीतता

आ साजन,आज बांते कर लें.......

साभार ः  अमॄता प्रीतम

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